पेड़ आँगन के तिरे जब बारवर हो जाएँगे दोस्तों के हाथ के पत्थर इधर हो जाएँगे मेरे अश्कों के ये क़तरे लाख बे-क़ीमत सही जब तिरे दामन पे टपकेंगे गुहर हो जाएँगे क्या ख़बर थी हम इधर घर में जलाएँगे चराग़ उस तरफ़ झोंके हवा के बा-ख़बर हो जाएँगे इस जहान-ए-बे-अमाँ में बर्ग-ए-आवारा हैं हम जब चलेगी तेज़ आँधी दर-ब-दर हो जाएँगे ज़ुल्मतों से हार मानेंगे न ऐ 'आज़ाद' हम ख़ुद फ़रोज़ाँ हो के शम-ए-रहगुज़र हो जाएँगे