है ख़ाक-बसर सबा मिरे बा'द गुलशन की फिर हवा मिरे बा'द थी जा-ए-विसाल मंज़िल-ए-गोर हासिल हुआ मुद्दआ' मिरे बा'द ऐ तप न जलाना उस्तुख़्वाँ को मायूस न हो हुमा मिरे बा'द क़ातिल ने बहाए लाश पर अश्क था बस यही ख़ूँ-बहा मिरे बा'द यूँ ख़ाक में मैं मिला कि उस ने पाया न मिरा पता मिरे बा'द की दाग़ ने ख़ाक से तराविश गुल क़ब्र से ये खिला मिरे बा'द औरों पे करोगे जब जफ़ाएँ याद आएगी ये वफ़ा मिरे बा'द गो मैं न रहा मगस की सूरत शोहरा तो रहा मिरा मिरे बा'द ऐ ग़म मिरी जान खा चुका तू क्या होगी तेरी ग़िज़ा मिरे बा'द बे-जुर्म किया जो क़त्ल मुझ को जल्लाद ख़जिल हुआ मिरे बा'द रूठा रहा यूँ तो उम्र भर वो तुर्बत से गले लगा मिरे बा'द बाक़ी न रहा जहाँ में 'आजिज़' कुछ लुत्फ़ ज़बान का मिरे बा'द