पेट की आग बुझाने का सबब कर रहे हैं इस ज़माने के कई मीर मतब कर रहे हैं कोई हमदर्द भरे शहर में बाक़ी हो तो हो इस कड़े वक़्त में गुमराह तो सब कर रहे हैं कहीं ख़तरे में न पड़ जाए बुज़ुर्गी अपनी लोग इस ख़ौफ़ से छोटों का अदब कर रहे हैं सब लिफ़ाफ़े की हुसूली के लिए हो रहा है हम जो ये शग़्ल जो ये कार-ए-अदब कर रहे हैं हर कोई जान हथेली पे लिए फिर रहा है इन दिनों वो लब-ओ-रुख़्सार ग़ज़ब कर रहे हैं