फिर निगाहों को वही मंज़र पुराने दे गया ज़िंदगी के वास्ते कैसे बहाने दे गया मुझ को अपनी पुश्त पर रख कर हवाएँ ले उड़ीं और मेरा शौक़ मुझ को ताज़ियाने दे गया ये करम उस का जो मुझ को पत्थरों के शहर में जितने भी शीशों के थे सब कार-ख़ाने दे गया मैं ने उस से कुछ नहीं माँगा मगर वो ख़ुद मुझे जो भी उस के पास थे सारे ख़ज़ाने दे गया एक ही शब वो यहाँ ठहरा मगर जाते हुए क्या छुपा कर ले गया और क्या न जाने दे गया उस परिंदे ने तो इक मुद्दत से खाया था न कुछ इक शिकारी आज आ कर उस को दाने दे गया