फिर उस पल को खोज रहा हूँ जिस में तेरा क़ुर्ब मिला था मंज़िल की पर्वा थी किस को रस्ता तेरे साथ कटा था उस की आँखें याद थीं मुझ को नाम मगर मैं भूल गया था तेरे लबों की बात चली थी मैं ने फूल को चूम लिया था तेरी याद का इन आँखों में इक चश्मा सा फूट रहा था आँसू बन कर गिरता 'अरशद' तू ने उस को थाम लिया था