फूल किस हाल में हैं और सबा कैसी है कुछ बताओ मुझे गुलशन की फ़ज़ा कैसी है पहले जैसा है कि बदला है बहारों का मिज़ाज ग़ुंचा-ओ-गुल के महकने की अदा कैसी है मौज-ए-दरिया की तरब-ख़ेज़ अदा है कि नहीं और कोहसार की बदमस्त घटा कैसी है क्या हुजूम आज भी जल्वों का है पहले जैसा शहर-ओ-बाज़ार की रंगीन फ़ज़ा कैसी है क्या लहू आज भी रोती हैं सुलगती आँखें अब तिरे शहर में तौक़ीर-ए-वफ़ा कैसी है