पी चुके थे ज़हर-ए-ग़म ख़स्ता-जाँ पड़े थे हम चैन था फिर किसी तमन्ना ने साँप की तरह हम को डस लिया मेरे घर तक आते ही क्यूँ जुदा हुई तुझ से कुछ बता एक और आहट भी साथ साथ थी तेरे, ऐ सबा सर में जो भी था सौदा उड़ गया ख़लाओं में मिस्ल-ए-गर्द हम पड़े हैं रस्ते में नीम-जाँ शिकस्ता-दिल ख़स्ता-पा सब खड़े थे आँगन में और मुझ को तकते थे, बार बार घर से जब मैं निकला था मुझ को रोकने वाला कौन था जोश घटता जाता था टूटते से जाते थे हौसले और सामने 'बानी' दौड़ता सा जाता था रास्ता