पी कर शराब बज़्म में फिर आइए ज़रा है मय-कशी में होश भी बतलाईए ज़रा यूँ पढ़ रखे हैं हम ने तो कितने ही फ़ैसले दिल की इबारतों को भी पढ़वाईए ज़रा मुझ सा नहीं मिलेगा तुम्हें यार फिर कहीं चाहें तो घूम कर ये जहाँ आइए ज़रा अच्छी नहीं है बे-रुख़ी मुझ से यूँ आप की आ कर क़रीब से ही गुज़र जाइए ज़रा होता कभी हबीब जो बनता रक़ीब है क़िस्मत के रंग देखते रह जाइए ज़रा बाहर बहुत ही गर्द है धोके फ़रेब की यूँ पैरहन बदल के ही घर आइए ज़रा बेड़ी बने हैं कुछ तो यहाँ रस्म और रिवाज यूँ 'गीत' को क़फ़स से निकलवाईए ज़रा