पिछले बरस के सानहे भूले न हम अभी तुम सामने न आओ कि ताज़ा हैं ग़म अभी मुंसिफ़ हमारे अह्द के अल्लाह की पनाह क़ातिल से कह रहे हैं कि है मोहतरम अभी उठने लगीं अभी से मिरी सम्त उँगलियाँ दहलीज़-ए-मै-कदा पे रखा है क़दम अभी कोई नहीं है मेरा ग़म-ए-हिज्र के सिवा क्या जाने किस की याद में पलकें हैं नम अभी कीजे जफ़ाएँ और कि फूले फले ये फ़न सोज़-ओ-गुदाज़ तर्ज़-ए-बयाँ में है कम अभी इस को जहाँ में और भी होना है पाएदार उर्दू ज़बाँ पे ढाते ही रहिए सितम अभी दिल में ख़ुदा है उन के कहो उन से 'सरफ़राज़' जो फिर रहे हैं देखते दैर-ओ-हरम अभी