पीला था चाँद और शजर बे-लिबास थे तुझ से बिछड़ के गाँव में सारे उदास थे सोचा तो तू मगन था फ़क़त मेरी ज़ात में देखा तो कितने लोग तिरे आस-पास थे जब हम न मिल सके तो हमें मानना पड़ा बस्ती के लोग कितने सितारा-शनास थे दिल इस पे मुतमइन था कि हम एक हो गए लेकिन कई गुमाँ मिरी सोचों के पास थे वो फूल हो सितारा हो शबनम हो झील हो तेरी किताब-ए-हुस्न के सब इक़्तिबास थे 'अश्फ़ाक़' उस को देख के हम से ग़ज़ल हुई मुद्दत से वर्ना हम तो यूँही महव-ए-यास थे