पिंदार-ए-शब-ए-ग़म का दरबार सलामत है पर शम-ए-फ़रोज़ाँ का इंकार सलामत है आईन-ए-ज़बाँ-बंदी ज़िंदाँ पे नहीं लागू ज़ंजीर सलामत है झंकार सलामत है तुम पा-ब-शिकस्ता भी अफ़राज़-सरी देखो दस्तूर सलामत है दस्तार सलामत है नश्शा नहीं पैमाना आँखें नहीं दिल देखो मिक़दार सलामत है मेआ'र सलामत है अब जो भी नहीं बाक़ी बे-वज्ह नहीं बाक़ी अब जो भी सलामत है बे-कार सलामत है