पिव सात रीज रहना लज़्ज़त इसे कते हैं अप रीज फिर रिझाना सनअ'त इसे कते हैं मुज नैन के नगर में लालन वतन किए हैं जब अंजुमन के लोगाँ ख़ल्वत उसे कते हैं मैं छाँव हो पिया संग लागी रही हूँ दाएम यक पल जुदा न होना वसलत उसे कते हैं गुल होर गुलाब मियाने नईं कुच फ़र्क़ अज़ल से यू पिव सूँ मिल रही हूँ उल्फ़त इसे कुत्ते हैं हित चोर चित भुलावे मैं आपने पिया कूँ आक़िल जहाँ के बोलें हिकमत उसे कते हैं चारों पहर पिया संग कई भाँत कर मदन के संजोग हो रही हूँ इशरत उसे कते हैं रूँ रूँ रसन करी मैं 'शाही' का नानों लेने फिर फिर वो नाम लेना राहत इसे कते हैं