पूछें वो काश हाल दिल-ए-बे-क़रार का हम भी कहें कि शुक्र है पर्वरदिगार का लाज़िम अगर है शुक्र ही पर्वरदिगार का फिर क्या इलाज गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार का सय्याद भी पहुँच गया गुल-ची भी बाग़ में ऐ हम-सफ़ीर आ गया मौसम बहार का तदबीर क्या हो सब्र-ओ-शकेब-ओ-क़रार की वो तुंद-ख़ू है बस का न दिल इख़्तियार का क्यूँ-कर मिटे नदामत-ए-इज़हार-ए-आरज़ू आलम नज़र में है निगह-ए-शर्मसार का क़ानून किस ने बदला है क़ुदरत का शैख़-जी दारू है अब भी मय ही ग़म-ए-रोज़गार का उन नामियों के हश्र से इबरत-पज़ीर हो बाक़ी नहीं निशान भी जिन के ग़ुबार का रक्खेगा बे-क़रार तुम्हें भी तमाम उम्र मरना तड़प तड़प के किसी बे-क़रार का बे-लौस हो हवस से अगर इश्क़ ऐ 'वफ़ा' है ज़िक्र-ए-यार में भी मज़ा वस्ल-ए-यार का