पुराने घर से निकल कर नए मकान की सम्त बहुत से लोग गए इक अजब जहान की सम्त पुकारता है जो सदियों से हम को ऐ यारो चलो चले चलें उस टूटे साएबान की सम्त जो एक उम्र से रहता था बर्फ़-ज़ारों में चला है किस लिए जलती हुई चट्टान की सम्त मिला था राह में बैठा जो एक दिन हम को सुना है जा चुका वो शख़्स आसमान की सम्त मिरा जहाज़ जो पहुँचेगा उस जज़ीरे में न कोई ग़ौर से देखेगा बादबान की सम्त कभी जो सोचा है हक़ बात कह दूँ ऐ 'असअद' बढ़ी हैं क़ैंचियाँ कितनी मिरी ज़बान की सम्त