पूरी मिरे जुनूँ की ज़रूरत न कर सके सहरा-ए-जाँ भी हो तो किफ़ालत न कर सके सई-ओ-अमल की रूह मोहब्बत के साथ थी वो कुछ न कर सके जो मोहब्बत न कर सके दुनिया में जितने ग़म मिले दिल में बसा लिए हम सिर्फ़ तेरे ग़म पे क़नाअ'त न कर सके अपना ही हाल-ए-ज़ार सुनाते रहे तुझे लेकिन तिरे सितम की शिकायत न कर सके ताराज कर के इश्क़ की बस्ती चले गए तुम फ़त्ह कर के दिल पे हुकूमत न कर सके दुनिया में अब भी लोग वफ़ा के हैं मुद्दई' हासिल हमारे हाल से इबरत न कर सके है काफ़िर-ए-अदब मिरे मशरब में ऐ 'सबा' शाइ'र जो एहतिराम रिवायत न कर सके