या'नी उस बेवफ़ा सितम-गर की याद आने से कुछ नहीं होता शाम-ए-हिज्राँ उदास है लोगो घर जलाने से कुछ नहीं होता शाहज़ादी हमारी क़िस्मत में हर नफ़स टूट कर बिखरना है तेरी चारागरी-ए-उल्फ़त को आज़माने से कुछ नहीं होता बारहा तुझ को भूल जाने की कोशिशें कर के देख जाना है याद रखना फ़ुज़ूल है जिस को भूल जाने से कुछ नहीं होता शाम भी रंग भी हवाएँ भी दिल में उतरी हैं कुछ सदाएँ भी पर मिरी जान सच कहूँ तुझ बिन सब ज़माने से कुछ नहीं होता अपना अह्द-ए-वफ़ा भी तोड़ दिया अब तो वो शह्र उस ने छोड़ दिया पहन कर नीली शर्ट अब अपनी शह्र जाने से कुछ नहीं होता इश्क़ में चोट खाई है दिल पर हिज्र में शब गुज़ारी है रो कर शह्र वालो हमारी हालत पर वरग़लाने से कुछ नहीं होता 'पुष्पराज' अपनी ज़िंदगी जैसे कोई बेवा का हुस्न हो जिस का एक दफ़अ' गर सिंगार पुछ जाए फिर सजाने से कुछ नहीं होता