पुश्त-ए-पा मारी बस-कि दुनिया पर ज़ख़्म पड़ पड़ गया मिरे पा पर डूबे उछले है आफ़्ताब हनूज़ कहीं देखा था तुझ को दरिया पर गिरो मय हूँ आओ शैख़ शहर अब्र झूमा ही जाहे सहरा पर दिल पर ख़ूँ तो था गुलाबी शराब जी ही अपना चला न सहबा पर याँ जहाँ में कि शहर-ए-गोराँ है सात पर्दे हैं चश्म-ए-बीना पर फ़ुर्सत-ए-ऐश अपनी यूँ गुज़री कि मुसीबत पड़ी तमन्ना पर तारुम-ए-ताक से लहू टपका संग-बाराँ हुआ है मीना पर 'मीर' क्या बात उस के होंटों की जीना दूभर हुआ मसीहा पर