पुतला-ए-ख़ाक में है भेद छुपा क्या कहिए खोल दें फिर तो हो इक शोर बपा क्या कहिए हम हों मादूम जहाँ आप हों मुमकिन ही नहीं कब ज़िया शम्स से होती है जुदा क्या कहिए तुम को ही छोड़ दें या ख़ुद को ही हम खो बैठें उतनी ही बात में मिलता है पता क्या कहिए कौन ज़ाहिर है सिवा आप के जब मैं ने कहा हो गए फिर तो ख़फ़ा हो के ख़फ़ा क्या कहिए चश्म-ए-अहवल हैं हक़ीक़त में शरीअ'त वाले दोनों आलम में नहीं तेरे सिवा क्या कहिए तू छुपा ख़ुद को अगर हम को अयाँ चाहता है यही आती है मिरे दिल से सदा क्या कहिए हश्र तक होश में हम आ नहीं सकते हैं 'असद' पी चुके साक़ी से वो जाम-ए-फ़ना क्या कहिए