प्यासे होंट किनारे पर रुक जाते हैं अच्छा सुर्ख़ इशारे पर रुक जाते हैं जब मैं सत्ह-ए-आब पे चलता फिरता हूँ देखने लोग किनारे पर रुक जाते हैं मेरे हाथ से सिर्फ़ नहीं घड़ियाल गिरा कितने वक़्त ख़सारे पर रुक जाते हैं हम ऐसों के कौन मुक़ाबिल आएगा हम तूफ़ान के धारे पर रुक जाते हैं फिरने निकलते हैं महताब नगर में हम लेकिन एक सितारे पर रुक जाते हैं उड़ते उड़ते गिर पड़ते हैं आग के बीच शाम के वक़्त हमारे पर रुक जाते हैं गर तू जाता है मंसूर-'आफ़ाक़' कहीं इक बे-नाम सहारे पर रुक जाते हैं