मन भी शाइ'र की तरह तन भी ग़ज़ल जैसा है ये तिरे रूप का दर्पन भी ग़ज़ल जैसा है रेशमी चूड़ियाँ ऐसी कि ग़ज़ल के मिसरे ये खनकता हुआ कंगन भी ग़ज़ल जैसा है इन लचकती हुई ज़ुल्फ़ों में है गोकुल का समाँ ये महकता हुआ सावन भी ग़ज़ल जैसा है लोग-गीतों की तरह तू भी रसीली है मगर मेरी सजनी तिरा साजन भी ग़ज़ल जैसा है मेरे जज़्बात की शोख़ी भी ग़ज़ल जैसी है मेरे एहसास का बचपन भी ग़ज़ल जैसा है देख कर तुझ को ग़ज़ल कैसे न लिक्खे 'क़ैसर' तू ग़ज़ल जैसी है यौवन भी ग़ज़ल जैसा है