क़ल्ब-ए-ग़म-ख़ुर्दा के हालात किसे पेश करूँ ठेस खाए हुए जज़्बात किसे पेश करूँ आहें भरते हुए लम्हात किसे पेश करूँ हसरत-ओ-यास के दिन-रात किसे पेश करूँ मेरी महरूमी-ए-क़िस्मत ये बता दे मुझ को अपने अरमानों की बारात किसे पेश करूँ हश्र में आया हूँ मैं तोहफ़ा-ए-इस्याँ ले कर सोचता हूँ कि ये सौग़ात किसे पेश करूँ हासिल-ए-ज़ीस्त हैं दुनिया में ख़राबात मिरे वक़्त-ए-रुख़्सत ये ख़राबात किसे पेश करूँ किस को दम-साज़ करूँ अपनी सियह-बख़्ती का ग़म में डूबी हुई ये रात किसे पेश करूँ रक़्स करते हुए मयख़ाने पे छाए बादल कैफ़-बर-दोश ये बरसात किसे पेश करूँ रू-ए-रौशन का तसव्वुर कभी ज़ुल्फ़ों का ख़याल दिन किसे पेश करूँ रात किसे पेश करूँ आदमी अब भी नहीं जिंस-ए-वफ़ा से वाक़िफ़ मैं वफ़ाओं की ये सौग़ात किसे पेश करूँ जो ज़बाँ की कभी शर्मिंदा-ए-एहसाँ न हुई 'जाफ़री' दिल की वो इक बात किसे पेश करूँ