दस्त-ए-हुनर झटकते ही ज़ाएअ' हुनर गया चारागरी नहीं रही जब चारा-गर गया हस्ती से मिल गया मुझे कुछ नीस्ती का फ़हम सहरा वहाँ मिला जहाँ दरिया उतर गया क्या हो सके हिसाब कि जब आगही कहे अब तक तो राएगानी में सारा सफ़र गया वो एक जज़्बा जिस ने जमाल-आशना किया मंज़र हटा तो जिस्म के अंदर ही मर गया शायद सर-ए-हयात मुझे आ मिले कभी इक शख़्स मेरे जैसा न जाने किधर गया