रात बहुत शराब पी रात बहुत पढ़ी नमाज़ एक वुज़ू में हो गई मुझ से कई कई नमाज़ तुम तो अज़ान दे के यार जाने कहाँ चले गए मस्जिद-ए-जिस्म क्या बताए कैसे पढ़ी गई नमाज़ मेरे बग़ैर हो न पाई कोई नमाज़-ए-ज़िंदगी होगी मगर मिरे बग़ैर मेरी वो आख़िरी नमाज़ मैं भी बहुत नशे में था नशे में था इमाम भी उस ने पढ़ाई जाने क्या मैं ने भी क्या पढ़ी नमाज़ बुत-कदा था कि मय-कदा साक़ी था बुत कि था ख़ुदा सुब्ह रहा न कुछ भी याद रात बहुत पढ़ी नमाज़ कौन सुनाएगा मुझे मेरी अज़ान की अज़ान कौन पढ़ाएगा मुझे मेरी नमाज़ की नमाज़ ये भी कोई मरज़ है क्या चल दिए फिर नमाज़ को पढ़ के तो आए थे हुज़ूर आप अभी अभी नमाज़ जैसे कि एक ही ग़ज़ल होती है सारी उम्र में वैसे ही सारी उम्र में होती है एक ही नमाज़