रात गहरी है मगर एक सहारा है मुझे ये मिरी आँख का आँसू ही सितारा है मुझे मैं किसी ध्यान में बैठा हूँ मुझे क्या मालूम एक आहट ने कई बार पुकारा है मुझे आँख से गर्द हटाता हूँ तो क्या देखता हूँ अपने बिखरे हुए मलबे का नज़ारा है मुझे ऐ मिरे लाडले ऐ नाज़ के पाले हुए दिल तू ने किस कू-ए-मलामत से गुज़ारा है मुझे मैं तो अब जैसे भी गुज़रेगी गुज़ारूँगा यहाँ तुम कहाँ जाओगे धड़का तो तुम्हारा है मुझे तू ने क्या खोल के रख दी है लपेटी हुई उम्र तू ने किन आख़िरी लम्हों में पुकारा है मुझे मैं कहाँ जाता था उस बज़्म-ए-नज़र-बाज़ाँ में लेकिन अब के तिरे अबरू का इशारा है मुझे जाने मैं कौन था लोगों से भरी दुनिया में मेरी तन्हाई ने शीशे में उतारा है मुझे