रात गहरी है तो फिर ग़म भी फ़रावाँ होंगे कितने बुझते हुए तारे सर-ए-मिज़्गाँ होंगे क़हर है साअ'त-ए-महशर है कि कोहराम-ए-फ़ना ख़ाक इस शहर-ए-फ़ना-कोश में इंसाँ होंगे शहर हो दश्त हो महफ़िल हो कि वीराना हो हम जहाँ जाएँ वही ख़ार-ए-मुग़ीलाँ होंगे कैसे इस शहर-ए-ख़राबी में बसर की हम ने कल जो आएँगे वो अंगुश्त-ब-दंदाँ होंगे शाम से दिल में तराज़ू है कोई तीर-ए-सितम रात गुज़रेगी न ख़्वाबों के शबिस्ताँ होंगे दीद का बार-ए-अमानत न उठेगा उस शब ख़ूँ-चकाँ सुब्ह तलक दीदा-ए-हैराँ होंगे फ़िक्र महबूस हुई हर्फ़-ए-दुआ गुंग हुआ अहल-ईमान-ओ-नज़र ख़ाक-ब-दामाँ होंगे