रात का तारीक-तर पत्थर जिगर पानी करें हम भला किस के लिए ये कार-ए-ला-सानी करें दिन तो दिन रातों को भी ये अपनी मन-मानी करें मम्लिकत पर दिल की यादें जैसे सुल्तानी करें बस गए हैं आँख में मंज़र पस-ए-मंज़र सराब हम कहाँ तक अपने ख़्वाबों की निगहबानी करें इक तिलिस्मी रंग में खो जाएँ जब चेहरे तमाम फ़र्ज़ है आँखों पे क्या इज़हार-ए-हैरानी करें अब तो सारे फ़ैसले हैं संग-दिल रातों के हाथ ये अगर चाहें तो फिर ख़्वाबों की अर्ज़ानी करें जब उदास आँखें दिलों से गुफ़्तुगू करने लगें फिर तो लब बेकार ही ज़िक्र-ए-पशेमानी करें