रात की तीरगी सजाएँगे आँसूओं के दिए जलाएँगे दिल में दीवार इक उठाएँगे दर्द तेरा अलग बसाएँगे आप ज़ुल्मों की इंतिहा कर लें हम अभी सब्र आज़माएँगे ज़िंदगी के उदास लम्हों में और कितने अज़ाब आएँगे काटना हैं जड़ें क़दामत की पौदे अब कुछ नए लगाएँगे कोई सैलाब आने तक 'आसी' हम नदी पार कर ही जाएँगे