रात क्या सोच रहा था मैं भी अपने आलम का ख़ुदा था मैं भी वो भी कुछ ख़ुद से अलग था जैसे अपने साए से जुदा था मैं भी वो भी था एक वरक़ सादा किताब हर्फ़-ए-बे-सौत-ओ-सदा था मैं भी सूरत-ए-शाख़-ए-समर-दार था वो सूरत-ए-दस्त-ए-सबा था मैं भी वो भी इक हल्क़ा-ए-गिर्दाब में था और बस डूब चला था मैं भी फूल खिलने का अजब मौसम था आइना देख रहा था मैं भी