रात-दिन जोश-ए-जुनूँ से काम होना चाहिए इश्क़ की दुनिया में अपना नाम होना चाहिए मिट न जाए इस जहाँ से इश्क़ का नाम-ओ-निशाँ कुछ तो पास-ए-हसरत-ए-नाकाम होना चाहिए गुल-रुख़ों की बात छोड़ो वो ख़िज़ाँ-दीदा हैं फूल फ़स्ल-ए-गुल का ज़िक्र सुब्ह-ओ-शाम होना चाहिए ज़िंदगी मिटती है मिट जाए अदा-ए-फ़र्ज़ में फ़र्ज़ की तकमील पर अंजाम होना चाहिए चल दिए सब दोस्त और अहबाब तन्हा छोड़ कर अब तो मजबूरन ग़रीक़-ए-जाम होना चाहिए चारागर से हो नहीं सकता ग़रीबी का इलाज अब ग़रीबों ही का क़त्ल-ए-आम होना चाहिए ये भी है कोई हुकूमत जिस की लाठी उस की भैंस जानते हो इस का जो अंजाम होना चाहिए अज़्म-ओ-हिम्मत हो तो बन जाता है 'आज़म' हर कोई शर्त ये है आदमी ख़ुश-काम होना चाहिए