रातों के अंधेरों में ये लोग अजब निकले सब नाम-ओ-नसब वाले बे-नाम-ओ-नसब निकले ता'मीर-पसंदी ने कुछ ज़ीस्त पर उकसाया कुछ मौत के सामाँ भी जीने का सब निकले ये नूर के सौदागर ख़ुद नूर से आरी हैं गर्दूं पे मह-ओ-अंजुम तनवीर-तलब निकले ये दश्त ये सहरा सब वीरान हैं बरसों से इस सम्त भी दीवाना तकबीर ब-लब निकले तहज़ीब की बेबाकी ऐसी तो न थी पहले हम जब भी कहीं निकले ता-हद्द-ए-अदब निकले तस्कीं के लिए हम ने जिन से भी गुज़ारिश की हम से भी ज़ियादा वो तस्कीन-तलब निकले हस्ती की मसाफ़त में अपना जिन्हें समझा था जब वक़्त पड़ा 'फ़रहत' वो मोहर-ब-लब निकले