राज़ मत अपना बता सब का मगर हमराज़ बन गर ज़माना अपना करना हो ज़माना-साज़ बन चोट खा सीने पे अपने नारा-ए-हू-हक़ लगा सोज़ की तुझ को तमन्ना है तो मिस्ल-ए-साज़ बन लाख रोतों को हँसाओ इस के हम क़ाइल नहीं मुर्दे जी उट्ठें सरापा सूर की आवाज़ बन बे-नियाज़ी पे तिरी है नाज़ ऐ मौला मुझे नाज़-पर्वर्दा हूँ मैं तू भी मुजस्सम नाज़ बन