रब्त-ए-एहसास कहाँ अब दिल-ए-नाकाम के साथ क्यों बुझा जाता है ये तीरगी-ए-शाम के साथ क्या ख़बर उन का पता पाए न पाए ये भी मैं तो चलने को चलूँ गर्दिश-ए-अय्याम के साथ अब तो वो भी नहीं जो दे मुझे दो लम्हे सुकूँ दिल में जो दर्द सा रहता था तिरे नाम के साथ कौन जाने कि कहाँ होगा वो आलाम-तलब दिल को देखा तो था टूटे हुए असनाम के साथ हाल-ए-दिल जाने वो किस रंग में ता'बीर करें चंद आँसू भी गए हैं मिरे पैग़ाम के साथ सोचता हूँ कि लगाऊँगा किसे अपने गले बे-ख़ुदी आई अगर तल्ख़ी-ए-आलाम के साथ लाख टूटा हो 'सबा' लब से लगा लो अपने रूह-ए-मय-ख़ाना खींची आती हो जिस जाम के साथ