रब्त साँसों का कहेगी रात बाक़ी अब तो रुक रुक कर चलेगी रात बाक़ी कट गई इक रात करते बात तुझ से क्या पता कैसे कटेगी रात बाक़ी इक मुकम्मल ज़िंदगी कैसे लिखूँ मैं दिन मुकम्मल पर रहेगी रात बाक़ी जुर्म था संगीन तुम ख़्वाबों में आए तब रिहाई जब ढलेगी रात बाक़ी बात जब कोई नहीं तो शोर क्या है रात भर पूछा करेगी रात बाक़ी वो मिरे पहलू में आ कर सो गए हैं अब ग़ज़ल जैसी चलेगी रात बाक़ी