रफ़्तगाँ की सदा नहीं मैं हूँ ये तिरा वाहिमा नहीं मैं हूँ तेरे माज़ी के साथ दफ़्न कहीं मेरा इक वाक़िआ नहीं मैं हूँ क्या मिला इंतिहा-पसंदी से क्या मैं तेरे सिवा नहीं मैं हूँ एक मुद्दत में जा के मुझ पे खुला चाँद हसरत-ज़दा नहीं मैं हूँ उस ने मुझ को मुहाल जान लिया मैं ये कहता रहा नहीं मैं हूँ मैं ही उजलत में आ गया था इधर ये ज़माना नया नहीं मैं हूँ मेरी वहशत से डर गए शायद यार बाद-ए-फ़ना नहीं मैं हूँ मैं तिरे साथ रह गया हूँ कहीं वक़्त ठहरा हुआ नहीं मैं हूँ गाहे गाहे सुख़न ज़रूरी है सामने आईना नहीं मैं हूँ सरसरी क्यूँ गुज़रता है मुझे ये मिरा माजरा नहीं मैं हूँ उस ने पूछा कहाँ गया वो शख़्स क्या बताता कि था नहीं मैं हूँ ये किसे देखता है मुझ से उधर तेरे आगे ख़ला नहीं मैं हूँ