यूँ 'जौन' पढ़ कर लहू उगलने की मुझ से शर्तें न बाँध लेना ग़रज़ के बेजा गुमान पर तुम यक़ीं की गिर्हें न बाँध लेना तवील रस्ता सफ़र है मुश्किल असासा कम ही रखो तो बेहतर सो ऐसा करना कि अपने दामन में मेरी नज़्में न बाँध लेना उबल रहा है जो एक चश्मा वो बहर-ए-आज़म बनेगा इक दिन किसी किनारे कि चाह में तुम बस अपनी मौजें न बाँध लेना जहाँ की ख़ातिर ऐ जान-ए-जानाँ जो संग-दिल तुम बने फिरे हो मिले मोहब्बत तो पीठ पीछे ख़ुद अपनी बाहें न बाँध लेना