रफ़्ता रफ़्ता मंज़र-ए-शब ताब भी आ जाएँगे नींद तो आ जाए पहले ख़्वाब भी आ जाएँगे क्या पता था ख़ून के आँसू रुला देंगे मुझे इस कहानी में कुछ ऐसे बाब भी आ जाएँगे ख़ुश्क आँखों ने तो शायद ये कभी सोचा न था एक दिन सहराओं में सैलाब भी आ जाएँगे हौसले यूँ ही अगर बढ़ते गए तो देखना साहिलों तक एक दिन गिर्दाब भी आ जाएँगे बस ज़रा मिलने तो दो मेरी तबाही की ख़बर दिल दुखाने के लिए अहबाब भी आ जाएँगे आप की बज़्म-ए-मोहज़्ज़ब में नया हूँ 'शाद' मैं आते आते बज़्म के आदाब भी आ जाएँगे