रफ़्ता रफ़्ता सब मनाज़िर खो गए अच्छा हुआ शोर करते थे परिंदे सो गए अच्छा हुआ कोई आहट कोई दस्तक कुछ नहीं कुछ भी नहीं भूली बिसरी इक कहानी हो गए अच्छा हुआ एक मुद्दत से हमारे आईने पे गर्द थी आँसुओं के सैल उस को धो गए अच्छा हुआ बेकली कोई न थी तो दिल बड़ा बे-ज़ार था अब हवादिस दर्द इस में बो गए अच्छा हुआ रंग अपना हो नुमायाँ शौक़ बेजा था हमें रास्तों की धूल में हम खो गए अच्छा हुआ बे-सबब रोता था 'फ़िक्री' और रुलाता था हमें अब ज़माना हो गया उस को गए अच्छा हुआ