रग-ए-जाँ में समा जाती हो जानाँ तुम इतना याद क्यूँ आती हो जानाँ तुम्हारे साए है पहलू में अब तक कि जा कर भी कहाँ जाती हो जानाँ मिरी नींदें उड़ा रक्खी हैं तुम ने ये कैसे ख़्वाब दिखलाती हो जानाँ किसी दिन देखना मर जाऊँगा मैं मिरी क़स्में बहुत खाती हो जानाँ वो सुनता हूँ मैं अपनी धड़कनों से तुम आँखों से जो कह जाती हो जानाँ पराया-पन नहीं अपनाइयत है जो यूँ आँखें चुरा जाती हो जानाँ