रह गए अश्कों में लख़्त-ए-जिगर आते आते रुक गए बहर से लाल-ओ-गुहर आते आते थम गए क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर आते आते रुक गए मुजमर-ए-दिल से शरर आते आते होते होते न हुआ मिसरा-ए-रंगीं मौज़ूँ बंद क्यूँ हो गया ख़ून-ए-जिगर आते आते थम गए अश्क मिरे आँख से ढलते ढलते रह गए चश्म-ए-सदफ़ से गुहर आते आते रह गया कहने पे ग़म्माज़ों के सुन सुन के मिरी फिर गया यार मिरा राह पर आते आते दे दिया नक़्द-ए-दिल उस बुत को बग़ैर अज़ जाने हो गया राह में कैसा ज़रर आते आते देखते देखते देखेंगे मिरे जौहर-ए-तब्अ आएँगे आएँगे अहल-ए-नज़र आते आते क्या भरा ज़ंग-ए-कुदूरत से ये आईना-दिल जो नज़र आए न वो फिर नज़र आते आते गर्दिश-ए-चश्म ने किस को तह-ओ-बाला न किया हो गए ज़ेर-ओ-ज़बर राह पर आते आते अश्क-ए-ख़ूनी नहीं आते हैं जो आँखों से तिरी क्यूँ रुकी 'मुंतही' दिल की ख़बर आते आते