रह कर भी तुझ से दूर तिरे आस-पास हूँ हिज्राँ में जल रही हूँ मैं जैसे कपास हूँ क़ब्ज़ा किया है किस ने ये मेरे शुऊ'र पर इक उम्र हो गई है मुझे बद-हवास हूँ दुनिया न देख पाएगी तेरा कोई भी ऐब मुझ को पहन के देख मैं तेरा लिबास हूँ जिस से मिरा सुकून भी देखा नहीं गया दा'वा वो कर रहा है तिरा ग़म-शनास हूँ मैं मुस्कुरा के बात तो करती हूँ ऐ 'सिया' अब किस को मैं बताऊँ की कितनी उदास हूँ