रह कर मकान में मिरे मेहमान जाइए मेरा भी एक बार कहा मान जाइए कहता हर एक है तिरी तस्वीर देख कर इस शक्ल इस शबीह के क़ुर्बान जाइए मुझ को पिला के बज़्म में कहने लगे वो आज बस जाइए यहाँ से मिरी जान जाइए सुम्बुल ने आज नर्गिस-ए-हैराँ से ये कहा जब जाइए चमन में परेशान जाइए मैं ने कहा ये उन से जब आए वो वक़्त-ए-नज़अ' है आख़िरी सवाल मिरा मान जाइए नक़्श-ए-क़दम तिरा है हर इक ग़ैरत-ए-चमन ऐ यार तेरी चाल के क़ुर्बान जाइए ऐ यार देख ज़ुल्फ़-ए-मोअ'म्बर न खोल तू आगे ही दिल है अपना परेशान जाइए जिस से कभी था तुम को शब-ओ-रोज़ इख़्तिलात ये है वही तो 'मशरिक़ी' पहचान जाइए