राह के पत्थरों से भारी है हम ने क्या ज़िंदगी गुज़ारी है रात उल्टी पहन के सोता हूँ हिजरतों का अज़ाब जारी है हम तो बाज़ी लगा के हार चुके दोस्तो अब तुम्हारी बारी है मुझ पे फूलों का क़र्ज़ है मैं ने ज़िंदगी शाख़ से उतारी है सोचता हूँ कि थक गया हूँ मैं तेरी जानिब सफ़र भी जारी है ये जो हम तुम को भूल जाते हैं इक तअ'ल्लुक़ की उस्तुवारी है अब ज़माना बदल गया है 'क़ैस' अब मोहब्बत भी इख़्तियारी है