राह में क़दमों से जो लिपटी सफ़र की धूल थी तुम ने आँखों में जगह दी ये तुम्हारी भूल थी उम्र भर लड़ता रहा जो वक़्त की चट्टान से कल मिरे काँधे पे उस की लाश जैसे फूल थी ख़ैर इन बातों में क्या रक्खा है क़िस्सा ख़त्म कर मैं तुझे हमदर्द समझा था ये मेरी भूल थी दोस्ती का हक़ निभाया तेरी ख़ातिर लड़ पड़े वर्ना सच ये है कि उस की बात ही माक़ूल थी