रह रहे हैं मकीं शबों के By Ghazal << सहरा-ए-ख़याल का दिया हूँ क्या भला मुझ को परखने का ... >> रह रहे हैं मकीं शबों के क्या हुए ढेर सूरजों के आँख में ख़्वाब मुंजमिद हैं रंग बरसाओ हौसलों के ख़ून से तय किए गए हैं रास्ते ज़र्द मौसमों के मक़्तलों से उठाए मैं ने फूल से जिस्म दोस्तों के ऐ ज़मीं तेरी अज़्मतों में बह गए शहर वाहिमों के Share on: