रहा करते हैं मय-ख़ानों में हम पीर-ए-मुग़ाँ हो कर

रहा करते हैं मय-ख़ानों में हम पीर-ए-मुग़ाँ हो कर
तबीअत ज़िंदा-दिल रखती है पीरी में जवाँ हो कर

छुपे थे क़ब्र में गर्दिश-ज़दा क्या शादमाँ हो कर
यहाँ भी साथ है दौरान-ए-सरका आसमाँ हो कर

हुआ है शोहरा दाग़ों का निसार-ए-गुल-रुख़ाँ हो कर
उड़ी बू-ए-वफ़ा मेरी नसीम-ए-बोस्ताँ हो कर

झुकेगी रफ़्ता रफ़्ता शाख़-ए-नख़्ल-ए-क़द कमाँ हो कर
खिंचेगा तूल फ़ुर्क़त का ज़ह-ए-तीर-ए-फ़ुग़ाँ हो कर

मुशाबह कर दिया क्यूँ ज़ोफ़ ने उन की नज़ाकत से
मुझे ख़ुद अपने ऊपर रश्क आया ना-तवाँ हो कर

गई रौनक़ भी चेहरे की हवास-ओ-अक़्ल जाते हैं
उड़ा सब रंग-ए-रुख़ वहशत में गर्द-ए-कारवाँ हो कर

ज़मीं पर सोज़िश-ए-ग़म से गिरेगा आसमाँ जल कर
शरार-ए-दिल चला सर हल्क़ा-ए-दौर-ए-फ़ुग़ाँ हो कर

तसद्दुक़ उन पे होता हूँ जो शो'ले दिल से उठते हैं
बसर करता हूँ मैं परवाना-ए-शम-ए-फ़ुग़ाँ हो कर

फ़ना हो कर कहीं मिटती है यारब शोरिश-ए-वहशत
फ़ुग़ाँ करता हूँ मैं ज़ंजीर-ए-बाब-ए-ला-मकाँ हो कर

ख़ुदा समझे हमारी आह-ए-सोज़ाँ से जुदाई में
कि सारी दिल की ताक़त उड़ गई मुँह से धुआँ हो कर

दिल-ए-नालाँ ने हम-सायों को भी दुश्मन किया अपना
रहा करते हैं हम बत्तीस दाँतों में ज़बाँ हो कर

हमेशा से 'नज़र' हम महव-ए-याद-ए-रू-ए-रौशन हैं
चमक इस दर्द की रस्सी से हम दिल में नूर-ए-जाँ हो कर


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