राहत मिली सुकून मिला आगही मिली वो क्या मिले कि हम को नई ज़िंदगी मिली दिल का बुझा चराग़ अचानक भड़क उठा इक चश्म-ए-पुर-ख़ुलूस में वो शो'लगी मिली साथ उन के ज़िंदगी का सफ़र इस तरह कटा राहों में हर क़दम पे ख़ुशी नाचती मिली जिस में रचा हुआ था मिरा रंग-ए-आरज़ू उन के लबों पे गीत की वो पंखुड़ी मिली शायद मिरी निगाह-ए-परस्तिश का सेहर था मूरत वो मरमरीं सी मुझे बोलती मिली इक माह-वश का नूर रहा रूह पर मुहीत हर रात ज़िंदगी की मुझे चाँदनी मिली बदनाम इश्क़ में न हुए ग़ैर की तरह इज़्ज़त-फ़ज़ा हयात हमें इश्क़ की मिली दिल-बस्तगी-ए-बज़्म में तलवे झुलस गए शो'लों पे रक़्स करती हमें ज़िंदगी मिली इक मेहरबाँ नज़र की अदा-ए-लतीफ़ से आवारगी-ए-‘राज़’ को शाइस्तगी मिली