रहबर ही न बन दोस्त का भी फ़र्ज़ निभा दोस्त दो-चार क़दम साथ भी तो चल के दिखा दोस्त गर बाँट सके बाँट मिरा दर्द वगरना ग़म-ख़्वार भी बनने की तू ज़हमत न उठा दोस्त दो हाथ उठा कर दुआ करने के बजाए बेहतर है मदद के लिए इक हाथ बढ़ा दोस्त आगे है निकलना तो निकल शौक़ से आगे नाहक़ किसी हमराह को नीचे न गिरा दोस्त कब तक तू सुनेगा मिरे अशआ'र पुराने तू ज़ख़्म नया दे तो मैं दूँ गीत नया दोस्त बाहर से है पत्थर तो है अंदर से 'सदा' मोम बाहर से उसे देख के राय न बना दोस्त