रहे हमारे लिए शग़्ल याँ कोई न कोई दया करे हमें ग़म आसमाँ कोई न कोई अब इस में हज़रत-ए-ज़ाहिद हों या बरहमन हो बुतों की चूमता है आस्ताँ कोई न कोई कभी उठाते हैं दिल पर कभी जिगर पर दाग़ खुला ही रखते हैं हम बोस्ताँ कोई न कोई बुरा समझ मिरे आ'माल को न ऐ वाइज़ है इस मताअ' का भी क़द्र-दाँ कोई न कोई जो डगमगाए लहद पर मिरी तो फ़रमाया ज़रूर दफ़्न है बेताब याँ कोई न कोई अब इस में हो दिल-ए-बेताब या हो दीदा-ए-तर करेगा राज़-ए-मोहब्बत अयाँ कोई न कोई कभी है टीस जिगर में कभी है दिल में दर्द शब-ए-फ़िराक़ है आज़ार-ए-जाँ कोई न कोई हमारी आता शरर-बार हो कि नाला-ए-गर जलाएगा तुझे ओ आसमाँ कोई न कोई वो ख़ुद ही आएँगे अब या मुझे बुलाएँगे असर दिखाएगी आह-ओ-फ़ुग़ाँ कोई न कोई 'फहीम' वस्ल का अरमाँ हो या कि हिज्र का ग़म हमारे दिल में रहा मेहमाँ कोई न कोई