रहे ख़याल तनिक हम भी रू-सियाहों का लगे हो ख़ून बहुत करने बे-गुनाहों का नहीं सितारे ये सूराख़ पड़ गए हैं तमाम फ़लक हरीफ़ हुआ था हमारी आहों का गली में उस की फटे कपड़ों पर मिरे मत जा लिबास-ए-फ़क़्र है वाँ फ़ख़्र बादशाहों का तमाम ज़ुल्फ़ के कूचे हैं मार-ए-पेच उस की तुझी को आवे दिला चलना ऐसी राहों का उसी जो ख़ूबी से लाए तुझे क़यामत में तो हर्फ़-ए-कुन ने किया गोश दाद-ख़्वाहों का तमाम-उम्र रहें ख़ाक ज़ेर-ए-पा उस की जो ज़ोर कुछ चले हम इज्ज़ दस्त-गाहों का कहाँ से तह करें पैदा ये नाज़िमान-ए-हाल कि पोच-बाफ़ी ही है काम इन जुलाहों का हिसाब काहे का रोज़-ए-शुमार में मुझ से शुमार ही नहीं है कुछ मिरे गुनाहों का तिरी जो आँखें हैं तलवार के तले भी इधर फ़रेब-ख़ुर्दा है तू 'मीर' किन निगाहों का