रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी रुके न हाथ अभी तक है दम में दम बाक़ी उठा दुई का जो पर्दा हमारी आँखों से तो काबे में भी रहा बस वही सनम बाक़ी बुला लो बालीं पे हसरत न दिल में मेरे रहे अभी तलक तो है तन में हमारे दम बाक़ी लहद पे आएँगे और फूल भी उठाएँगे ये रंज है कि न उस वक़्त होंगे हम बाक़ी ये चार दिन के तमाशे हैं आह दुनिया के रहा जहाँ में सिकंदर न और न जम बाक़ी तुम आओ तार से मरक़द पे हम क़दम चूमें फ़क़त यही है तमन्ना तिरी क़सम बाक़ी 'रसा' ये रंज उठाया फ़िराक़ में तेरे रहे जहाँ में न आख़िर को आह हम बाक़ी